ओ रे प्यारे मेघा आओ धरती की तुम प्यास बुझाओ: ----
आज दिनांक १०.६.२३ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर मेरी प्रस्तुति:
ओ रे प्यारे मेघा आओ धरती की तुम प्यास बुझाओ:
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प्रचण्ड सूये की प्रज्वलित किरणें अबनि पर अग्नि बरसाती हैं,
पशु जा बैठे तरु-छाया मे चिड़िया कहीं जा जल ढ़ूंढ़ा करती हैं।
मानव विक्षिप्त है होता जाता ऐंसे क्रोधमय भास्कर से,
कहीं यज्ञ कहीं पूजा होती क्षमा मांगते दिनकर से।
मेघा ही अन्तिम निदान हैं इस विपदा से प्राण बचाने का,
इन्द्र देवता का भी सब करते प्रयत्न उन्हें खुश करने का।
कोई बच्ची थूप तप रही सारा गांव कह रहा मेघा आओ,
ओ रे प्यारे मेघा आओ धरती की प्यास बुझा जाओ।
इतनी जल विहीन है धरती बीज नहीं बो सकते हैं,
पानी ठीक से पड़ जाये तो कृषक बैल ले चल पड़ते हैं।
मजदूर वर्ग भी जलते सूरज में बोलो कैंसे काम करें
बुखार से शरीर भी तप जाता है,पैसे बिन कैंसे दवा करें
हर प्राणी, पशु -पक्षी की है इच्छा बादल आ जाओ,
हर प्राणी को दो सुकून तुम धरती की प्यास बुझा जाओ।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Asif
11-Jun-2023 08:38 AM
सुन्दर सृजन
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Punam verma
11-Jun-2023 08:12 AM
Very nice sir
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Abhinav ji
11-Jun-2023 12:36 AM
Very nice 👍
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